मेरा अपना कौन?

Written By: Anusha Chauhan


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मेरा अपना कौन?
जिन माँ बाप ने जन्म दिया
उनको अपना समझा
उन्होंने इक दिन हाथ छुड़ा कर कहा
अब हम पराये, अब से वो हैं तेरे अपने
नए बने अपनों ने दो दिन में बतला दिया
तू परायी है और रहेगी
अपनों ने शर्त रखी
समझौता करो, अपना वजूद मिटा दो
तब हम तुझे अपनाएँगे
पहचान मिटा दी, इच्छाएँ दबा दी
जब देखा दोबारा अपनों की और
बोले तू नहीं हमारे परिवार का हिस्सा
तू है परायी और रहेगी
बच्चों को समझा अपना
सोचा अब वो मन की खाली जगह भर जाएगी
उसपर भी जतला दिया
ये नहीं तेरे, हैं हमारे और रहेंगे
चाहे तो तुझसे छीन लें
तू कुछ ना कर सकेगी
तू है क्या? तेरी औकात क्या?
और झुक तो बच्चों को बनने दें तेरा
हँसी छीन ली, नींद छीन ली
मैंने सबको अपना माना
लेकिन कोई मुझे अपना ना सका
आँसू अपनी हँसी में छुपाकर
सब सह गयी इस उम्मीद में
कि शायद अब अपना ली जाऊँ
पता नहीं मेरी कोशिश में कहाँ कमी रह गयी
कि मैं परायी थी परायी ही रह गयी
कैसा होता गर मेरे अपने मुझे समझ लेते
मुझे अपना लेते
मुझे हँसने देते
मुझे बहने देते
मुझे बसने देते
तो शायद आज दिल का मंज़र कुछ अलग होता
जो उम्र कट गई घुटते हुए
इक अपना लिए की चाहत में
इक स्वीकृति मिलने की आशा में
वो उम्र शायद आज यूँ वीरान और बंज़र सी ना होती
शायद कुछ हरी-भरी सी होती
शायद यहाँ ठिठोलियाँ गूँजती
शायद ये यादें सँजोती
शायद ये शुक्रिया करती
शायद इसको जी भर के जीती लेती
लेकिन शायद यही मेरा मुकद्दर है
लेकिन शायद यही मेरी परीक्षा है
जो ख़त्म होती नहीं दिखती
जो नर्म होती नहीं दिखती
ये अपमान
ये तिरस्कार
ये प्रारब्ध
शायद यूँ ही चलता जाएगा
ये कभी ख़त्म न होने वाला सिलसिला
शायद उस दिन थम जाएगा
जिस दिन मेरा महाकाल मुझे अपना लेगा
शायद तब मेरी अपना लिए जाने की ख़्वाहिश पूरी होगी
शायद तब ये ज़िन्दगी की कश्मकश ख़त्म होगी
लेकिन जा के पूछूँगी ज़रूर उस ईश्वर से
कोई एक इंसान तो लिख देता मेरी किस्मत में
जिसको मैं अपना कह सकती 
जिस पर मैं हक जमा सकती
जिसके कांधे पर सर रख कभी कभी रो लेती
सारी उम्र गुजाऱ दी यही ढूँढ़ते हुए
कि
मेरा अपना कौन?


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ANUSHA CHAUHAN


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Comments


  1. Me jidngi bhar bahar kushi dhundta rha... Jindgi khatm hone pr jab aai tab pta chala... kushi to mere andar hi thi..jise me pahchan nhi paya.

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